हिन्द देश के हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका पर्व का बहुत ही महत्व है।जीवित्पुत्रिका व्रत प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व पर सभी माताएं अपने अपने पुत्र की लम्बी आयु अच्छे स्वास्थ्य,वंश वृद्धि खुशहाली,उन्नति, के लिए अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत करती है।jivitputrika vrat 2023 date and time
यह पर्व नहाने खाने के साथ सप्तमी तिथि से आरंभ होकर नवमी तिथि को समाप्त हो जाती है।इस वर्ष जीवित्पुत्रिका का यह पर्व 5 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा। तो दोस्तों आइये जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में विस्तार से -
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 - Jivitputrika vrat 2023
इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार अष्टमी तिथि को मनाया जाएगा। अतः 5 अक्टूबर को ही नहाय खाय(झिंगली या सरपुतिया का फल, मड़वा की रोटी, नौनी का साग का सेवन विशेष रूप से किया जाता है) के साथ आरम्भ हो जाती है और 7 अक्टूबर को समाप्त होगी।जीवित्पुत्रिका व्रत उत्तर भारत में मुख्य रूप से मनाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत छठ पर्व के समान है कठिन माना जाता है क्योंकि इस पर्व में व्रती महिलाएं निर्जला अर्थात (बिना अन्न जल) के 24घंटे अर्थात एक दिन और एक रात व्रत करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 शुभ मुहूर्त - Jivitputrika vrat 2023 auspicious time
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यानी 6 अक्टूबर 2023 को सुबह 6:34 पर प्रारंभ होगी। जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 अर्थात पश्चिम मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का समापन 7 अक्टूबर 2023 को 8:08 पर होगा। जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिनों तक चलने वाला पर्व है इस पर्व की शुरुआत सप्तमी तिथि और नहाए खाए के साथ को प्रारंभ हो जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 का पारण का समय - Parana time of Jivitputrika Vrat 2023
जीवित्पुत्रिका व्रत का 2023 का पारण 7 अक्टूबर को अष्टमी तिथि की समाप्ति के बाद होगा अष्टमी तिथि का समापन 7 अक्टूबर को 8:08 पर हो रहा है अर्थात 7 अक्टूबर को 8:08 के बाद किया जा सकता है। पारण करने के लिए सबसे पहले किसी पेय पदार्थ का शरबत ले सकते हैं। जैसे शरीर का एनर्जी लेवल भी बना रहे और शरीर को कमजोरी भी महसूस ना हो।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 पूजा विधि -
Jivitputrika vrat 2023 puja method
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 तीन दिनों तक चलने वाला व्रत है इस पर्व की शुरुआत प्राचीन (महाभारत)काल से होती आ रही है जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन पवित्र नदी में स्नान के बाद स्त्रियां कुशा से बनी जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा के समक्ष धूप दीप चावल पुष्प अर्पित करती हैं और विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करती हैं जीवित्पुत्रिका व्रत में गाय के गोबर और मिट्टी से चील और सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है जीवित्पुत्रिका व्रत का विधि विधान पूर्वक पूजा करते समय इनके मस्तक पर सिंदूर लगाया जाता है और पूजा संपन्न करने से पहले जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनाना आवश्यक समझा जाता है।
नोट
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