संत रविदास जयंती महोत्सव 2023/sant ravidas jayanti mahotsav 2023

 गुरु रविदास जयंती माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनायी जाती है । रविदास जी एक बहुत ही प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि और गीतकार थे। उनका भक्ति आंदोलन पर बहुत ज्यादा प्रभाव था। जो हिंदू धर्म के अनुसार एक आध्यात्मिक भक्ति आंदोलन था।  रविदास के भक्ति छंदों को सिख धर्मग्रंथों में गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से शामिल किया गया था। 

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संत रविदास जयंती महोत्सव 2023


रविदास जी के अनुयायियों ने 21 वीं सदी में ‘रविदासिया’ धर्म की स्थापना की। रविदासिया के अनुयायी प्रत्येक वर्ष गुरु रविदास जयंती श्रद्धापूर्वक मिलजुल कर मनाते हैं। भक्त विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और गुरु रविदास के गीतों और कविताओं का जाप करते हैं। सभी श्रद्धालु, गुरु रविदास की तस्वीर के साथ जुलूस निकालते हैं और गंगा नदी में स्नान करते हैं। कुछ लोग रविदास को समर्पित मंदिर की तीर्थ यात्रा पर भी जाते हैं और अपनी पूजा-अर्चना करते हैं।

 संत रविदास जी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं।

रविदास जयंती 2023 समय और तारीख - Ravidas Jayanti 2023 Time and Date

संत रविदास जी की 2023 में 647 वीं जन्म की वर्ष गांठ 5 फरवरी दिन रविवार को है।

विशेष : चूँकि पूर्णिमा 4 फरवरी को ही रात में 09:29 से प्रारम्भ होकर 5 फरवरी दिन रविवार 2023 को रात्रि में समाप्त होगी। 11: 58 है।

संत रविदास जी का जन्म एवं जीवन परिचय - Birth and life introduction of Sant Ravidas ji

 गुरु रविदास के जन्म को लेकर स्पष्ट जानकारी मौजूद नहीं है, परन्तु कुछ विशिष्ट साहित्यकार विद्वानों का मत है कि गुरू रविदास (रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा के दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। गुरु रविदास को रैदास के नाम से भी जाना जाता था। रैदास जी का जन्म वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था, जो उत्तर प्रदेश में स्थित है। उनका जन्मस्थान अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के नाम से जाना जाता है। 

रैदास जी के पिता का नाम रघू और माता का नाम घुरविनिया था। रैदास जी कि उनकी पत्नी का नाम लोना था। जीवनयापन के लिए रविदास जूते सिलने या बनाने का काम किया करते थे। रैदास जी ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने परम संत रामानन्द को अपना गुरु बना लिया। संत कबीर की प्रेरणा से उन्होंने संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया था, गुरु कबीर जी उनके पहले गुरु थे। उनके मधुर व्यवहार के कारण उनसे मिलने वाले लोग बहुत प्रसन्न रहते थे। रैदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु प्रवित्ति के थे, दूसरों की सहायता करने में उन्हें परम सुख मिलता था। साधु-सन्तों की मदद करने में उन्हें विशेष आनन्द की अनुभूति प्राप्त होती थी। ज्यादातर वे बिना पैसे लिए जूते दे दिया करते थे। उनके इस ब्यवहार के कारण उनके माता-पिता उनसे दुखी रहते थे। पैसों की बात से दुखी हो कर उनके माता पिता ने रैदास और उनकी पत्नी को अपने घर से निकाल दिया। रैदास जी पड़ोस के एक इमारत में किराए का घर लेकर पत्नी के साथ रहने लगे। और अधिकतर समय प्रभु-भजन और साधु-सन्तों के सत्संग में बिताया करते थे।रविदास जी को गुरु रविदास, संत रविदास, भक्त रविदास, रोहिदास, रैदास, रुहीदास आदि अलग अलग नामों से जाना जाता था।रविदास पंद्रहवीं शताब्दी के महान समाज सुधारक, विचारक, धार्मिक मानव, मानववादी महान कवि थे।

संत रविदास जी की कथा - Story of Saint Ravidas Ji

एक कथा के अनुसार एक दिन संत रविदास अपनी कुटिया में बैठे प्रभु का स्मरण ध्यान करते हुए अपने काम में व्यस्त थे। उसी समय एक ब्राह्मण रविदास जी की कुटिया पर आया और उनसे बोला कि मैं गंगाजी में स्नान के लिए जा रहा था, रास्ते में आपके दर्शन की इच्छा से यहां चला आया। रविदास जी ने उस ब्राह्मण को एक मुद्रा देते हुए कहा कि आप गंगा स्नान करने जा रहे हैं तो यह एक मुद्रा मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पण कर दीजिएगा। ब्राह्मण जब स्नान करने गंगाजी पहुंचा और स्नान कर जब पानी में मुद्रा डालने लगा तो गंगा मैया ने जल में से अपना हाथ निकालकर वह मुद्रा ब्राह्मण से ले ली और उसके बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया। ब्राह्मण गंगा मैया के द्वारा दिया कंगन लेकर लौटते हुए, नगर के राजा से मिलने जा पहुंचा। राजा को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण ने वह कंगन राजा को देने का विचार किया। उसने वह कंगन राजा को भेंट में दे दिया। राजा ने उस ब्राह्मण को बहुत-सी मुद्राएं देकर अपने राजभवन से विदा किया। ब्राह्मण के घर जाने के बाद, राजा ने वह कंगन अपनी रानी को प्रेम से तोहफे में दे दिया। रानी बहुत खुश हुई और राजा से बोली कि कंगन तो बहुत ही सुंदर है, लेकिन क्या बिल्कुल ऐसा ही एक और कंगन नहीं मंगा सकते हैं। एक कंगन अच्छा नहीं लगता है।  राजा ने अपनी पत्नी से दूसरा वैसा ही कंगन मंगवा कर देने का वादा किया। राजा से ब्राह्मण को बुला कर वैसे ही दूसरा कंगन लेकर देने को कहा। ऐसा ना होने की परिस्थिति में उसे दंड का पात्र बनना पड़ेगा। खबर सुनते ही ब्राह्मण के होश उड़ गए और वह पछताने लगा कि राजा को कंगन दे कर बहुत बड़ी गलती कर दिया है।

चिंतित और परेशान ब्राह्मण संत रविदास जी के घर पहुंच गया और पूरी कथा रैदास जी को कह सुनाई। और यह भी कहा कि गंगा जी से मिले कंगन जैसा दूसरा कंगन अगर मैं राजा को तीन दिन में नहीं दिया तो वे मुझे कठोरतम दंड देंगे। ब्राह्मण ने क्षमा मांगी कि आपको उस कंगन के बारे में बिना बताए मैंने उसे राजा को दे दिया। रविदास जी ने ब्राह्मण को शांत करते हुए कहा कि मैं तुमसे नाराज नहीं हुं। मैं वैसे भी इस कंगन का क्या करता। लेकिन अभी मैं गंगा मैया से प्रार्थना जरूर कर सकता हुं कि वे वैसे ही दूसरा कंगन दें जिससे तुम्हारा मान-सम्मान बच जाए। ऐसा कह कर संत रविदास जी ने अपनी वह कठौती उठाई जिसमें वे चमड़ा गलाते थे और उसे जल से भर दिया। उन्होंने गंगा मैया का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का। उसके बुलाने पर गंगा मैया प्रकट हो गई और रैदास जी की बात सुनकर उन्होंने एक और कंगन ब्राह्मण को दे दिया। वह कंगन राजा को भेंट करने के लिए ब्राह्मण प्रसन्न होकर चला गया ।

संत रविदास के जीवन में गुरुनानक देव जी का प्रभाव - Influence of Guru Nanak Dev Ji in the life of Saint Ravidas

अधिकतर  विद्वानों का मत  है कि रविदास सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक से मिले थे और उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वह सिख धर्मग्रंथों में पूजनीय हैं, इसलिए रविदास की 41 कविताओं को सिख धर्मग्रंथ में शामिल किया गया है। ये कविताएं उनके विचारों और साहित्यिक कृतियों के सबसे पुराने प्रमाणित स्रोतों में से एक हैं। 1693 में रविदास की मृत्यु के 170 साल बाद रचित इस पाठ को भारतीय धार्मिक परंपरा के सत्रह संतों में से एक के रूप में शामिल किया गया है। 17वीं सदी के नाभादास के भक्तमाल और अनंतदास के पारसी दोनों में रविदास पर अध्याय हैं। इसके अलावा, सिख परंपरा के ग्रंथ और हिंदू दादुपंथी परंपराएं, रविदास के जीवन के बारे में अधिकांश अन्य लिखित स्रोत, जिनमें रविदासी (रविदास के अनुयायी) शामिल हैं, की रचना 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, या लगभग उनके मौत के 400 साल बाद की गई थी। 

गुरु रविदास जी को संत की उपाधि कैसे प्राप्त हुई - How did Guru Ravidas ji get the title of saint

रैदास जी से जुड़ी एक विशेष कथा के अनुसार एक दिन रैदास जी अपने एक दोस्त के साथ खेल रहे थे। अगले दिन यानी कि दूसरे दिन भी रैदास जी उसी जगह पर खेलने के लिए गए।लेकिन उनके दोस्त नहीं पहुँचे।क्योंकि उनके दोस्त की मृत्यु हो चुकी थी।लेकिन रैदास जी इस बात से अनभिज्ञ थे।उन्होंने अपने दोस्त को खोजने का फैसला किया।दोस्त को खोजते समय रैदास जी को पता चला कि उनके दोस्त की मृत्यु हो चुकी है।दोस्त की मृत्यु की खबर पाने से रैदास जी घबरा गए और उस स्थान पर चल दिये जहां उनके दोस्त का मृत शरीर रखा हुआ था।दोस्त के मृतक शरीर के पास पहुंचे के बाद रैदास जी अपने दोस्त से बोले की यह समय खेलने या सोने का नहीं है।इस बात को सुनने पर रैदास जी का दोस्त उठ खड़ा हो गया।

संत रैदास जी के अंदर आलौकिक शक्ति  छिपी हुई थी।उसी दिन से संत रविदास या रैदास जी पर लोगों का विश्वास हो गया।समय के अनुसार रैदास जी अधिकतर समय भगवान कृष्ण और भगवान राम की पूजा अर्चना में लगाना शुरू कर दिये,और धार्मिक परम्पराओं का निर्वाह करते हुएसंत का दर्जा प्राप्त हुआ।

चमत्कारी और दिव्य शक्तियों से सम्पन्न संत रैदास जी का जन्मदिन माघ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।रैदास जी बचपन से ही लोगों के जूतों को सिलने या मरम्मत का कार्य प्रारम्भ कर दिये थे।रविदास जी लगातार अंतर्धार्मिक सद्भाव, पंथ धर्म या जाति के आधार पर गैरों के लिए पूर्वाग्रह के खिलाफ आवाज बुलंद किये।इस तरह लोग इस समय में भी रैदास की शिक्षाओं का पालन किया करते हैं और सीख लेते हैं।

रविदास जयंती 2023 समारोह - Ravidas Jayanti 2023 Celebrations

  • पंजाब प्रांत के सिख समुदाय के लोग रविदास जयंती को वार्षिक महोत्सव के रूप में धूम धाम से मनाते हैं।
  • अन्य समुदाय और धर्म के लोग भी इस उत्सव का नियमानुसार पालन करते हैं।
  • रविदास जयंती के दिन भक्त पवित्र जल में स्नान करते हैं।
  • अनेक स्थानों से रविदास जी के अनुयायी उनके जन्मस्थान पर पहुँचते हैं तो यह एक वार्षिक उत्सव बन जाता है।

संत रविदास जयंती पर व्यवस्थाऐं - Arrangements on Sant Ravidas Jayanti

  • पंजाब में सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों को लाइट (रोशनी) और फूलों से सजाते हैं और संत रविदास जी के सम्मान में प्रार्थना सभा का विशेष प्रबंध करते हैं।
  • रविदास जयंती पर संत रविदास जी की अमृतवाणी का पाठ किया जाता है और भक्त जुलूस निकालते है।जूलूस में संत रविदास जी की प्रार्थना करते हुए एक फोटो लगाते हैं।
  • संत रविदास जयंती पर कहीं कहीं नगर में कीर्तन का आयोजन होता है और प्रतिभागी संत रविदास जी की तरह कपड़े पहन कर आते हैं।
  • संत रविदास जयंती पर संत रविदास जी के अनुयायी नाटकों का आयोजन करके रविदास जी की मान्यताओं को फैलाते हैं।
  • संत रविदास जयंती आध्यत्मिकता और अत्यंत भक्ति भाव से मनाने का पर्व है।
  • संत रविदास जयंती पर रैदास जी की शिक्षाओं और अनुभवों से भी सिख लेते हैं तथा अच्छा और शान्त जीवन जीने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं।
  • संत रविदास जयंती वार्षिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

संत रविदास जी का साहित्य - Literature of Saint Ravidas

पीटर फ्रीडलैंडर के अनुसार रविदास की जीवनी, हालांकि उनकी मृत्यु के लंबे समय बाद लिखी गई। इनका साहित्य, भारतीय समाज के भीतर के संघर्ष को दर्शाता है, जहां रविदास का जीवन विभिन्न प्रकार के सामाजिक और आध्यात्मिक विषयों को व्यक्त करने का साधन देता है। एक स्तर पर, यह तत्कालीन प्रचलित विधर्मी समुदायों और रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी परंपरा के बीच संघर्ष को दर्शाता है। 

संत रविदास की रचना - Creation of Sant Ravidas

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,

जाकी अंग-अंग बास समानी।

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,

जैसे चितवत चंद चकोरा।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,

जाकी जोति बरै दिन राती।

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,

जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।

प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,

ऐसी भक्ति करै रैदासा।

*****

पूजा कहां चढ़ाऊं…

राम मैं पूजा कहां चढ़ाऊं ।

फल अरु फूल अनूप न पाऊं ॥टेक॥

थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।

पुहुप भंवर जल मीन बिगारी ॥1॥

मलयागिर बेधियो भुअंगा ।

विष अमृत दोउ एक संगा ॥2॥

मन ही पूजा मन ही धूप ।

मन ही सेऊं सहज सरूप ॥3॥

पूजा अरचा न जानूं तेरी ।

कह रैदास कवन गति मोरी ॥4॥

नोट - 

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Milan Tomic

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